
ग्रामीण विकास व रूपांतरण में ग्राम विकास कार्यक्रमों का प्रमुख योगदान- प्रो. भारती।
रोहित सेठ




वाराणसी महाराज बलवंत सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय (गंगापुर-वाराणसी) में भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित “21वीं सदी में ग्रामीण भारत: पुनर्निर्माण एवं रूपांतरण” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती एवं स्व. महाराज विभूति नारायण सिंह के प्रतिमा पर माल्यार्पण से प्रारंभ हुआ। जिसमें डॉ. अंजना सिंह ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की तथा संगोष्ठी में उपस्थित सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. पुरुषोत्तम सिंह के द्वारा शब्दों के माध्यम से किया गया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो. प्रमोद कुमार चौधरी (मगध विश्वविद्यालय, बोधगया) ने अपने उद्बोधन में कहा कि ग्रामीण समाज की पहचान आपसी प्रेम, सहयोग एवं पारस्परिकता से जुड़ी हुई है, जो व्यक्ति को प्रकृति से जोड़ती है। वर्तमान आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ने ग्रामीण समाज में अनेक प्रकार की समस्याओं को जन्म दिया है। जिसमें बेरोजगारी, ऋणग्रस्तता, आर्थिक विपन्नता, लोकतांत्रिक भावना की कमी एवं विकास परक शिक्षा का अभाव प्रमुख समस्याएं हैं। समापन कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. अनिल प्रताप सिंह (प्राचार्य जगतपुर स्नातकोत्तर महाविद्यालय वाराणसी) ने कहा कि ग्रामीण समाज से जुड़े हुए अध्ययनों में यदि शोधकर्त्ता द्वितीयक आंकड़ों के बजाय प्राथमिक तथ्यों का उपयोग करें तो निश्चित रूप से उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए शोध पत्र सरकार के द्वारा बनाई जाने वाली विभिन्न योजनाओं का मार्गदर्शन करने में सफल होंगे। क्योंकि विभिन्न एजेंसियों द्वारा प्रस्तुत द्वितीयक आंकड़े विश्वसनीयता के दृष्टिकोण से कितने सही हैं, इसका आकलन कर पाना तब तक संभव नहीं होगा जब तक की शोध छात्रों द्वारा प्राथमिक तथ्यों के आधार पर शोध कार्य क्रियान्वित नहीं किए जाएंगे। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि ग्रामीण समाज उत्पादित वस्तुओं की बिक्री में बिचौलियों की भूमिका को नगण्य बनाया जाए, जिससे ग्रामीण कुटीर उद्योगों को अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सके और उनका विकास हो सके। कार्यक्रम का समापन प्रो. आलोक कुमार कश्यप (समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष, महाराज बलवंत सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय) के सभी अतिथियों, प्रतिभागियों एवं सहकर्मियों को धन्यवाद ज्ञापन के साथ पूर्ण हुआ। संगोष्ठी में आज कुल संपन्न तीन तकनीकी सत्रों में विभिन्न शोधार्थियों के द्वारा ग्रामीण जाति, परिवार, विवाह, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, असंगठित श्रमिक और महिलाओं की भूमिका आदि विषयों में होने वाले परिवर्तनों पर अपने-अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः प्रोफ़ेसर दीपक कुमार लहरी, डॉ राम चिरंजीव पाल, डॉ राजू सिंह आदि के द्वारा की गई। कार्यक्रम का संचालन डॉ. दुर्गेश कुमार पांडेय के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में प्रो. शैलेंद्र कुमार सिंह, प्रो. मंजू मिश्रा, डॉ. अर्चना श्रीवास्तव, डॉ. भूपेंद्र कुमार यादव, डॉ. अभिषेक अग्निहोत्री, डॉ अर्चना सिंह, डॉ उमेश कुमार, डॉ महेंद्र कुमार तथा उमेश प्रसाद राय आदि प्राध्यापकों के अतिरिक्त विभिन्न राज्यों व विश्वविद्यालयों से आए अनेक शोधार्थी उपस्थित रहे।