केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत काशी-तमिल संगमन के सांस्कृतिक कार्यक्रम में हुए शामिल।

केंद्रीय मंत्री ने काशी-तमिल संगमम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की परिकल्पना को साकार करने वाला बताया।

कहा–तमिल संस्कृति अपने समृद्ध साहित्य, संगीत, नृत्य, लोककलाओं और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।

रोहित सेठ

वाराणसी,केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत काशी-तमिल संगमन के तृतीय संस्करण के तृतीय दिवस पर सोमवार को आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल हुए।नमो घाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन।
संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (प्रयागराज) एवं दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (तंजावुर) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस दौरान केंद्रीय मंत्री ने कहा कि काशी-तमिल संगमम प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की परिकल्पना को साकार करने वाला ऐतिहासिक सांस्कृतिक आयोजन है। काशी और तमिलनाडु के बीच का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध हजारों वर्षों पुराना है। यह संबंध भारतीय सभ्यता की एकता और विविधता का प्रतीक है। तमिल भाषा दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है, और तमिल संस्कृति अपने समृद्ध साहित्य, संगीत, नृत्य, लोककलाओं और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने काशी-तमिल संगमम जैसे आयोजन के माध्यम से उत्तर और दक्षिण भारत की आत्मीयता को पुनर्जीवित करने का कार्य किया है। काशी भारत की आध्यात्मिक राजधानी है, तो तमिलनाडु भारतीय संस्कृति का गौरव है। दोनों की संस्कृति में श्रद्धा, भक्ति और कला की एक समान धारा प्रवाहित होती है। केंद्रीय मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि इस आयोजन के माध्यम से देशवासियों को तमिलनाडु की लोककलाओं, परंपराओं और भाषा-साहित्य की संपन्नता से परिचित होने का अवसर मिल रहा है। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम न केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करता है, बल्कि भारतीय समाज की अखंडता और एकता की भावना को भी मजबूत करता है।

तृतीय दिवस के कार्यक्रम में तमिलनाडु की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाने वाली विविध प्रस्तुतियां हुईं, जिन्होंने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। भारतनाट्यम की प्रस्तुति श्रीमती माला होम्बल और उनकी टीम द्वारा दी गई, जिसमें भाव, राग और ताल के माध्यम से देवी-देवताओं की स्तुति, भक्ति और मानव जीवन के विभिन्न भावों को सजीव किया गया। इसके बाद पी. अन्नादुरई और उनकी टीम ने तमिलनाडु की पारंपरिक लोकनाट्य शैली ठेरुकूट्टू का प्रदर्शन किया। मुखौटे, रंगीन वेशभूषा और कथा-वाचन के साथ प्रस्तुत इस नाट्य कला ने पौराणिक कथाओं को मंच पर जीवंत कर दिया।

इसके बाद के. अशोक कुमार और उनकी टीम ने पेरियामेलम, दमुकु एवं सत्तीमेलम की वाद्य प्रस्तुति दी, जिसमें ढोल, नगाड़े और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज ने दक्षिण भारत के ग्राम्य उत्सवों और मंदिरों की भव्यता का अनुभव कराया। मदुरै से आए सेंतिल वेलुकुमार और उनके दल ने तमिल महाकाव्य कम्ब रामायण के अंशों की प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में भगवान राम की मर्यादा पुरुषोत्तम छवि और रावण के साथ युद्ध प्रसंगों को प्रभावशाली ढंग से दर्शाया गया। इसके बाद कट्टईकल, करगम, थप्पत्तम और लोकगीतों की मनमोहक प्रस्तुतियां हुईं। करगम नृत्य में सिर पर कलश रखकर संतुलन साधते हुए नर्तक-नर्तकियों ने अपनी अद्भुत कला का परिचय दिया, जबकि थप्पत्तम नृत्य में लोकसंगीत और ताल की थाप के साथ तमिल जनजीवन की झलक प्रस्तुत की गई।

काशी-तमिल संगम का यह सांस्कृतिक उत्सव 24 फरवरी 2025 तक जारी रहेगा, जिसमें प्रतिदिन तमिलनाडु की लोककलाओं, शास्त्रीय नृत्य-संगीत, लोकनाट्य एवं परंपराओं की भव्य झलक देखने को मिलेगी।

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