महाशिवरात्रि पर विशेष

रिपोर्ट:रामकिशोर

औरैया। जहां पूरा देश शिवरात्रि के महापर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ तैयारी कर रहा है, वहीं हम आपको एक ऐसे प्राचीन शिव मंदिर की खूबियों से अवगत कराते हैं, जिसमें कई अनसुलझे रहस्य छिपे हुए हैं। जी हां ! हम बात कर रहे हैं औरैया जनपद के जिला मुख्यालय से 13 व औरैया शहर से 3 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में बीहड़ में यमुना नदी किनारे स्थित देवकली मंदिर की। प्राचीन कहानियां और रीति-रिवाजों के अनुसार मंदिर 11वीं शताब्दी से संबंधित है। हालांकि पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह मंदिर 18वीं शताब्दी का माना जाता है।
जनपद के दक्षिण दिशा में बीहड़ व यमुना नदी किनारे स्थित देवकली मंदिर औरैया जनपद के साथ-साथ आसपास के कई जनपदों में आस्था का प्रतीक बना हुआ है। कहा जाता है कि इस शिवालय पर जो भी अपनी मनोकामना लेकर आता है, भगवान शिव उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करते है। पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह मंदिर 18वीं शताब्दी में कन्नौज के राजा जयचंद की इकलौती पुत्री देवकला इस मंदिर में पूजा करती थी।जिसके नाम पर मंदिर को देवकली मंदिर के नाम से जाना गया।


शिवरात्रि पर एक जौ के बराबर बढ़ता है शिवलिंग
मंदिर को लेकर यह भी कहा जाता है कि प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ का शिवलिंग एक जौ के दाने के बराबर बढ़ जाता है। इसका पता लगाने के लिए कई वैज्ञानिक आए लेकिन शिवलिंग की इस रहस्यमय गुत्थी को कोई भी सुलझा नहीं सका। वहीं, प्रतिवर्ष बढ़ते शिवलिंग के आकार के चलते कोई भी श्रद्धालु शिवलिंग को अपनी भुजाओं में नहीं भर पाता है।
यह भी कहा जाता है कि एक रहस्य यह भी है कि शिवलिंग पर चढ़ने वाला जल व दूध कहां जाता है किसी को पता नहीं। लोगों का कहना है कि शिवरात्रि और सावन में शिवलिंग पर चढ़ने वाला हजारों लीटर दूध व जल कुछ ही समय बाद गायब हो जाता है। कई वैज्ञानिकों ने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए काफी प्रयास किया। लेकिन कोई भी विद्वान आज तक यह पता नहीं लगा पाया कि आखिर शिवरात्रि व सावन में शिवलिंग पर चढ़ने वाला हजारों व लाखों लीटर दूध व जल जाता कहां है।
औरंगजेब की सेना नहीं गिरा पाई मंदिर…..
मंदिर कमेटी से जुड़े लोग और वहां मिले तथ्यों के मुताबिक औरंगजेब की सेना ने मंदिर को गिराने के लिए अपना डेरा जमा लिया था। जब शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया तो लाल वाली ततारी मक्खी ने हमला बोल दिया। इससे सेना का हौसला पस्त हो गया और बगैर मंदिर तोड़े ही वहां से चले गये।
सांप देख भागे बदमाश
जानकारों के अनुसार जिस जगह मंदिर है उस एरिया में कभी डकैतों का राज चलता था। एरिया में डकैतों का फरमान ही चलता था। महंत बताते हैं कि कुख्यात दस्यु फक्कड़ बाबा और बाबा सलीम के लोगों ने मंदिर में डेरा जमाना चाहा तो भोले बाबा ने सांप के रूप में दर्शन दिए। इससे डकैत डर कर वहां से भाग गये।
मंदिर द्वार पर 40 फीट त्रिशूल की स्थापना
प्राचीन मंदिर के प्रवेश द्वार पर पूजा-अर्चना कर 40 फीट का त्रिशूल समाजसेवी संस्था संवेदना ग्रुप द्वारा स्थापित कराया गया। महंत शिवजी दास ने त्रिशूल के तीन सिरों के महत्व को समझाते हुए कहा कि त्रिशूल के तीन गुण सत्व, रज, तम के परिचायक हैं। इनके तीनों के बीच सामंजस बनाये बगैर सृष्टि का संचालन कठिन है। इसलिए शिव ने त्रिशूल रूप में इन तीनों को अपने हाथों में धारण किया। यह त्रिदेव का परिचायक और सूचक है यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश का।

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