
पांच दिवसीय कार्यशाला का समापन आई.यू.सी.टी.ई. परिसर में हुआ संपन्न।
रोहित सेठ

वाराणसी अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र, बीएचयू, वाराणसी तथा विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान, तमिलनाडु व भारतीय भाषा समिति, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में “ट्रेनिंग ऑफ़ ट्रेनर्स : प्रमोटिंग भारतीय लैंग्वेजेज एंड इंटीग्रेटिंग भारतीय ज्ञान परंपरा इन हायर एजुकेशन करिकुला” विषय पर पांच दिवसीय कार्यशाला का समापन आई.यू.सी.टी.ई. परिसर में हुआ। कार्यशाला के पांचवे दिन तीन व्याख्यान हुए और अंतिम सत्र समापन समारोह के रूप में आयोजित किया गया।
दिन का पहला व्याख्यान प्रो. एन.के. तनेजा, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा दिया गया। उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि भारतीय ऋषियों ने कभी भी कला और विज्ञान की शिक्षा के बीच विभाजन रेखा नहीं खींची। वे हमेशा ज्ञान की एकता का समर्थन करते रहे हैं।
दूसरे व्याख्यान में प्रो. लोकेश जिंदल, एसोसिएट प्रोफेसर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक प्रबंधन शिक्षा को समाहित करते हुए नवाचार आधारित मूल्यांकन विधियों पर जोर दिया।
तीसरे व्याख्यान में प्रो. कैलाश चंद्र शर्मा, अध्यक्ष, हरियाणा उच्चतर शिक्षा परिषद, हरियाणा ने प्राचीन बौद्धिक परंपराओं और वाराणसी के आध्यात्मिक शिक्षण केंद्रों की समृद्ध विरासत पर प्रकाश डाला।
कार्यशाला के अंत में समापन समारोह का आयोजन हुआ। समापन सत्र का शुभारम्भ द्वीप प्रज्ज्वलन व माँ सरस्वती व महामना मदन मोहन मालवीय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण व मंगलाचरण के साथ हुआ। समापन समारोह के मुख्य अतिथि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पूर्व कुलपति व सोसाइटी फॉर हायर एडुकेशन एंड प्रैक्टिकल एप्लीकेशंस (शेपा), वाराणसी के निदेशक प्रो. पृथ्वीश नाग रहे। उन्होंने अपने उद्बोधन में भारतीय भाषाओं के इतिहास के बारे में बताया और यह भी जोड़ा कि सभी भारतीय भाषाएँ संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं, सिवाय तमिल के। उन्होंने 200 साल पहले भारत के मानचित्रण पर बनी एक फिल्म भी दिखाई।
समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि डॉ. अलोक कुमार मिश्र, संयुक्त निदेशक, एसोसिएशन ऑफ़ इंडियन यूनिवर्सिटीज, नई दिल्ली रहे। डॉ. मिश्र ने भारतीय ज्ञान प्रणाली के माध्यम से मस्तिष्क को समझने पर जोर देते हुए बताया कि योग, ध्यान और आयुर्वेद जैसी प्राचीन पद्धतियों को आधुनिक तंत्रिका विज्ञान के साथ जोड़कर मानसिक स्पष्टता, भावनात्मक संतुलन और आनंद प्राप्त किया जा सकता है।
विशिष्ट अतिथि प्रो. सम्बथकुमार, पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, दर्शनशास्त्र विभाग, पचैयप्पा कॉलेज, चेन्नई, और प्रबंध न्यासी, VBUSS, तमिलनाडु ने कहा कि यह कार्यक्रम अच्छे से आयोजित किया गया और हमने इस कार्यक्रम में आईकेएस के बारे में बहुत कुछ सीखा।
गेस्ट ऑफ़ ऑनर के रूप में प्रो. कैलाश चंद्र शर्मा, अध्यक्ष, हरियाणा उच्चतर शिक्षा परिषद, हरियाणा रहे। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि ऐसे कार्यक्रमों का नियमित रूप से आयोजन किया जाना चाहिए ताकि संकाय सदस्यों को लाभ मिल सके।
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. प्रेम नारायण सिंह, निदेशक, आईयूसीटीई, बीएचयू, वाराणसी ने तमिलनाडु से पधारे सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया और कहा कि काशी और तमिल ज्ञान एवं विरासत के संगम से आने वाली पीढ़ियों को लाभ मिलेगा।
इस पांच दिवसीय कार्यशाला में तमिलनाडु, पांडिचेरी, कर्नाटक इत्यादि दक्षिण भारतीय प्रदेशों के उच्च शिक्षा संस्थानों के 30 से अधिक अध्यापकों ने प्रतिभाग किया। अतिथियों का स्वागत प्रो. आशीष श्रीवास्तव (संकाय प्रमुख, अकादमिक व शोध), धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अजय कुमार सिंह व समापन समारोह का संचालन डॉ. कुशाग्री सिंह ने किया। इस कार्यशाला में केंद्र के डॉ. विनोद कुमार सिंह, डॉ. राज सिंह, डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह, डॉ. सुनील कुमार त्रिपाठी, डॉ. अनिल कुमार सहित शैक्षणिक व गैर-शैक्षणिक कर्मचारी उपस्थित रहे। कार्यशाला का समन्वयन डॉ. राजा पाठक ने किया।