रिपोर्ट:रोहित सेठ
वाराणसी।जनभावना को दृष्टिगत 65 एकड़ के इस परिसर में स्थापित अनेकों भवनों के कक्षों में शैक्षिक और कार्यालयीय कक्ष स्थापित हैं।इसके लिए एक वृहद और स्पष्ट मानचित्र तैयार है जिसे शीघ्र ही केंद्रीय कार्यालय के पास स्थापित किया जाएगा।उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति प्रो बिहारी लाल ने विश्वविद्यालय के अभ्युत्थान एवं संवर्धन के दृष्टि में निर्णय लेते हुए व्यक्त किया।
67 एकड़ में फैला है परिसर—
कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि प्राच्यविद्या का यह संस्था सन 1791 ई में संस्कृत पाठशाला/संस्कृत कोलेज के रूप में की गई थी,22 मार्च 1958 को वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय तथा 16 दिसंबर 1973 को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के नाम आज सम्पूर्ण विश्व में जाना जाता है।जिसकी संबद्धता उत्तर प्रदेश सहित देश के अनेकों प्रदेशों में दी गई है।
इस परिसर का क्षेत्रफल 67 एकड़ है जो कि ऊंचे चाहरदीवारी के साथ 05 बड़े प्रवेश द्वारा से जुड़े हुये हैं।इसमें अध्ययन- अध्यापन की दृष्टि में लाल भवन, पाणिनी भवन, बहु संकाय भवन, श्रमण विद्या संकाय भवन, सरस्वती भवन पुस्तकालय, विस्तार भवन, केंद्रीय कार्यालय,परीक्षा भवन सहित अनेकों भवन , विशाल क्रीड़ा मैदान सहित मुख्य भवन स्थापित है।जिसका एक वृहद मानचित्र तैयार किया गया है शीघ्र ही उसे स्थापित कर दिया जाएगा।
मानचित्र के माध्यम से वाह्य आगन्तुकों को सहयोग प्राप्त होगा जो कि अपने उद्देश्य और गंतव्य तक आसानी से पहुंच सकेंगे।
अतिथि देवो भव के अनुरूप परम्परा का निर्वहन––
कुलपति प्रो शर्मा ने बताया कि हमारी संस्कृति और परम्परा के आलोक में अतिथि देवो भव: के संस्कृत वाक्यांश के राह पर।
यह संस्था वैश्विक स्तर पर भारतीय ज्ञान परम्परा एवं सनातन संस्कृति स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, यहां पर सदैव देश- विदेश से संस्कृत प्रेमियों का आगमन होता रहता है, उनके सहयोग के लिए सदैव संकल्पबद्ध होकर यह कार्य किया जा रहा है।इस संस्था के अभ्युदय एवं उत्थान के दृष्टिगत रखते हुए ही “विश्वविद्यालय विकास समिति ” का गठन कर काशी के लोगों का सहयोग और संरक्षण प्राप्त है।
आगे इस समिति के सहयोग से संस्था के अभ्युदय के लिये संकल्पित विचार से कार्य योजना तैयार की जाएगी।