। अवैध, अवैधानिक यक्ष प्रश्न से इतर कृषि क्षेत्र और कृषि,कृषक को बिनाश के बैताल से बचाना महत्वपूर्ण है। खनन कारोबारी धर्मांतरण की तरह लालच देकर गांव के गरीब को अपने चंगुल में फंसाते हैं। 2 फुट की जगह 5 से 6 फुट गहराई से मिट्टी निकाल कर सदा के लिए उर्वरा शक्ति को अजगर की भांति निगल लेते हैं। खास तौर पर निचले तबके के लघु कृषक इनके फसांने में आ जाते हैं।संधान पड़ोस के बड़े कृषक पर उत्पीड़न की बिनापर साधा जाता है। खनन के बाद क्षरण से पड़ोसी बर्बादी के दंश में धकेल दिए जाते हैं। बरसा व सिंचाई का पानी मुशविला, चिटविला से खनन क्षेत्र में जाने लगता है। धीरे-धीरे खेत की उर्वरा शक्ति मिट्टी के साथ कटान का रूप धारण कर लेती है। अन्नदाता वैध और अवैध खनन के दो पाटों के बीच पीस रहा है। रसूखदारों की हिस्सेदारी समूचे सिस्टम को पंगु बना रही है। पुलिस व प्रशासन के पास हक हकूक के लिए अन्नदाता चक्कर काटते स्वयं घनचक्कर हो जाता है। नतीजा बेबसी ,लाचारी हासिल होती है। रसूखदारी के चलते पुलिस प्रशासन भी खनन का मामला होने को बता कर अपना पल्लू झाड़ लेता है। समूचे देश के पेट में 2 जून की रोटी पहुंचाने वाला अन्नदाता अपनी बर्बादी पर आंसू बहा रहा है। हाल ही में गोधरौली, औंग, विकमपुर, मानिकपुर, सगुनापुर, शिवराजपुर, अभयपुर, आशापुर, रावतपुर आदि सभी गांवों में खानिकार्य बा दस्तूर जारी हैं। निजी कार्य हेतु एक ट्राली मिट्टी खोदने पर वन विभाग अपनी जमीन बताकर रोक देता है। आखिरकार वन विभाग के रखवाले खनन करने वालों पर मेहरबान क्यों है। मुख्यमंत्री योगी की जीरो टोलरेंस नीति को जनप्रतिनिधि, सुशासन समर्पित,मोहरे देख कर भी मुखर क्यों नहीं। आने वाले समय में घड़ियाली आंसू भरकर इन गांव के भोले भाले किसानों के बीच में फिर सुशासन का ढोल बजाने पहुंचेंगे। आम जनमानस ढोल को फूटने के पहले उसके खोखले को नहीं भांप पाता है। युवा किसान नेता शैलेंद्र सिंह शैलू, समाजसेवी लल्ला सिंह गौतम, विवेक सिंह परिहार, शिक्षककृषक, प्रताप पटेल, राजनीतिज्ञ हेमलता पटेल, सूरजपाल यादव ने संकुचित होते कृषि क्षेत्र पर चिंता जाहिर की है। संवैधानिक मंचों व मुख्यमंत्री ऑफिस तथा पीएमओ तक इस ज्वलंत मुद्दे को पहुंचाने की बात की है।

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